Monday, March 15, 2010

विकास की खातिर घटाए घाटा

मित्रों पिछले दिनों मैने लोकप्रिय हिन्दी दैनिक नईदुनिया के इंदौर सहित मध्य देश-छत्तीसगढ़ और नई दिल्ली एनसीआर एडिशन के लिए प्री-बजट न्यूज सीरिज लिखी थी। विलंब के लिए खेद, किंतु अब मैं अपने ब्लग पर अपलोड कर रहा है। आशा करता हूँ कि मेरे द्वारा उठाए मुद्दे आपको पसंद आएगे

सुनिए वित्तमंत्रीजी
प्री बजट न्यूज सीरिज 3
वित्तीय घाटा जीडीपी के 6.8 तिशत के रिकार्ड स्तर पर पहुँचाना
सरकार का खर्च विकास कार्यों की तुलना में ब्याज अदायगी में ज्यादा बढ़ा
रुपया आय में से सबसे ज्यादा 20 पैसा ब्याज अदा करने में हो रहा है खर्च
फिजूल खर्ची खत्म कर सरकार घटा सकती है राजकोषीय

मनीष उपाध्याय
इंदौर । नास्तिक दर्शक को मानने वाले आचार्य चार्वाक का कहना था 'ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत्" (ऋण लो और घी पीयो)। लगता है कें सरकार भी इसी दर्शन को अपना रही है। 2009-10 के बजट में देश का राजकोषीय घाटा (फिस्क डिफिसीट) जीडीपी के ६ दशमलव 8 प्रतिशत के रिकार्ड स्तर पर पहुँच जाने का अनुमान गाया है। इस आँकड़ें का आशय यह होता है कि देश पर कर्ज के लिए ब्याज चुकाने की राशि बढ़ती जा रही है। इसकी सबसे बड़ी कीमत देश के आर्थिक-सामाजिक विकास में पिछड़ने के रुप में चुकाना पड़ सकती है। उम्मीद की जाए की सरकार तेजी से आर्थिक गति की ओर जाते चीन और अन्य देशों के साथ दौड़ में बने रहने के लिए काल के गाल की तरह बढ़ते राजकोषिय घाटे को खत्म करने के लिए गुड गवर्नेंस जैसे ठोस उपाय करेगी।
जुलई में अंतरिम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और बाद में अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री डॉ। मनमोहनसिंह खुद भी राजकोषिय घाटे का जीडीपी की तुलना में ऐतिहासिक स्तर 6.8 प्रतिशत (करीब 4 लाख करोड़ रु.) तक पहुँच जाने पर गहरी चिंता व्यक्त की थी। अब यह चिंता देश के विकास को खाने लगी है।
क्या आशय है फिस्क डिफिस्टि से
फिस्क डिफिसीट का बढ़ना याने सरकार पर कर्ज के पेटे ब्याज अदायगी की राशि का बढ़ना है। अर्थशास्त्र का सामान्य सिद्धांत है आय की तुलना में कर्ज का बढ़ना याने दिवालिया या होने की ओर बढ़ना या विकास के विपरीत जाना। पिछले बजट के अनुसार देखा जाए तो सरकार को होने वाली एक रुपया आय में से सबसे ज्यादा 20 पैसे ब्याज की अदायगी में खर्च करना पड़ रहा है।
क्या है दुष्परिणाम
देश की आय का बड़ा हिस्सा यदि कर्ज को पाटने में चला जाएगा तो विकास के लिए सरकार के पास कम पैसा बचेगा। एक अनुमान के अनुसार देश के बुनियादी क्षेत्र-सड़क, बिजली, दूरसंचार, पेयजल आदि के विकास के लिए अरबों रु। की आवश्यकता है। विकासोन्मुखी वैश्विक अर्थव्यवस्था में पिछड़ने का बड़ा खतरा लगने लगा है।
कर्ज का दलदल
1। सरकार कर्ज को पाटने के लिए नए कर्ज ले सकती है, लेकिन इससे नुकसान यहीं है कि राजकोषीय घाटा और बढ़ता चला जाएगा और देश कर्ज के मकड़ जाल में फंस जाएगा। इसलिए यह उपाय भी कारगार नहीं है।
2। नए नोट छाप कर सरकार कर्ज को पाट सकती है, लेकिन इसमें नुकसान यह है कि महँगाई बढ़ने का खतरा अधिक है, जो कोई भी लोकतांत्रिक सरकार नहीं कर सकती है।
क्या हो उपाय
1। सरकार गैर बजट आवंटन वाले, फालतू खर्चों, अनुत्पादक खर्चों को घटाए। अर्थात कास्ट ऑफ गवर्नेंस घटाए। केंद्र सरकार ने इसी सिलसिले में गत दिनों मंत्रियों के गैरजरुरी विदेशी यात्राओं और महंगी होटलों में ठहरें पर प्रतिबंध गाया था। किंतु लक्जरी और पाँच सितारा सुविधाओं में रहने के आदी हो चुके कथित जनसेवकों को यह उपाय सिर्फ 4 दिन में ही भारी लगने लगते है। इस तरह जनता के कर का पैसा अनुत्पादक कार्यों में खर्च भी हो जाते है और देश कर्ज के बोझ में दबा ही रहता है।
2। देश को कर्ज से बचाने के लिए तत्कालीन वित्त मंत्री पी। चिदंबरम द्वारा शुरू किए गए तथा मौजूदा समय में अधिक प्रसंगिक 'वित्तीय सुधार एवं बजट बंधन" (एफआरबीएम) उपायों को सख्ती से लागू किया जाए।
उम्मीदों का बजट
वित्त मंत्रीजी से उम्मीद की जाए कि गाँधीजी के कथित अनुयायी सही अर्थों में सादगी के साथ रहकर सरकारी फिजू खर्ची को रोकने के और सख्त कदम उठाएँगें तथा देश का पैसा कर्जों के बद े ब्याज चुकाने में जाने के बजाए देश के विकास में गे।

Friday, March 5, 2010

बंद हो जुर्माना वसूलना

  • सुनिये वित्त मंत्रीजी
  • प्रीबजट न्यूज सीरिज 2
    मामला : कर्ज के समय पूर्व भुगतान पर पेनल्टी लेना
  • कर्जदारों के आर्थिक हित में बैंकें सुधारें संपत्ति प्रबंधन
  • कतिपय बैंकें ने भी स्वीकारा व्यवस्था में सुधार जरुरी

मनीष उपाध्याय
इंदौर। यदि कोई व्यक्ति अपनी बचत से या पूर्व निवेश से प्राप्त बड़ी राशि से अपने कर्ज का समय पूर्व भुगतान कर कर्जमुक्त होना चाहे तो उस पर जुर्माना वसूलना कहाँ तक न्यायोचित है? इस पर यदि बैंकों की दलील यह हो कि संपत्ति-देयता प्रबंधन (असेट- लायबिलटी मैनेजमेंट) के यह जरुरी है तो क्यों न इस प्रबंधन को सुधारा जाए।

बैंकिंग क्षेत्र के कतिपय लोगों का भी मनाना है कि इस बारे में सुधार की गुंजाइश है। वित्त मंत्री को आगामी बजट में आम आदमी को कर्ज बोझ से बचाने के लिए उपाय घोषित करना चाहिए। गत दिनों भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने विभिन्ना किस्म के कर्जों के समय पूर्व भुगतान पर जुर्माना वसूलने (पेनल्टी ऑन प्री -पेमेंट ऑफ लोन) के औचित्य पर बैंकों से सवा किए थे। बैंकों की यह प्रवृत्ति तो कर्ज लेने के इच्छुक लोगों को हतोत्साहित करने जैसी है। प्रतिस्पर्धा के दौर में बैंकें अपना मुनाफा बढ़ाने की होड़ में ग्राहक हितों और सेवाओं की अनदेखी करती जा रही है, जो कई बार साबित भी हो चुका है।

प्रारंभ में बैंकों ने बचत खाता धारकों को उनके खातों में रोज की शेष राशि (डेली बैलेंस) पर ब्याज देने में आनाकानी की थी। बाद में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ द्वारा भारत सरकार और रिजर्व बैंक से इस पर सवाल किए जाने के बाद बैंकें 1 अप्रैल 2010 से बचत खातों में प्रतिदिन की शेष राशि पर ब्याज देने पर तैयार हुई है। बैंकें अब कर्ज राशि के समय पूर्व भुगतान पर जुर्माना वसूलने को बंद करने पर अपनी संपत्ति-देयता प्रबंधन में संतुलन बनाए रखने के लिए जुर्माना वसूलने को उचित ठहरा रही है। सवाल यह उठता है कि क्या बैंकें ग्राहकों के आर्थिक हित की बलि लेने के बजाए अपने प्रबंधन को नहीं सुधार सकती है? हालाँकि बैंकिंग सूत्रों का मानना है कि ग्राहकों के हित में समय पूर्व कर्ज की अदायगी के मामलों को करणों की गंभीरता को देखते हुए कर्जदार अनुकूल फैसला लेना चाहिए। अगर बैंकों अपने कर्जदारों को राहत नहीं देते है तो वित्त मंत्री को बजट में जुर्माना वसूलने पर रोक लगाने की घोषणा कर देश के करोड़ों कर्जदारों को राहत देना चाहिए।

क्यों है बैंकों का डर

कर्जों के मामलों में पिछले कुछ वर्षों में ' लोन टेकओवर" की प्रवृत्तित बढ़ी है। बैंकों के मध्य लोन की ब्याज दरों के बड़ें अंतर के कारण कर्जदार भी अपनी पूँजी बचाने के लिए लोन टेकओवर को तेजी से अपना रहे है। इस मामले में निजी और सरकारी बैंकों की ब्याज दरों के बीच बड़ा अंतर है। आमतौर पर देखा गया है कि निजी बैंकों के लोन की ब्याज दरें अधिक होने के कारण कर्जदार सरकारी बैंकों के जरिए अपने लोन का टेकओवर करवा लेते है। बैंकों खासकर निजी बैंकों को डर है कि लोन के समय पूर्व भुगतान हो जाने से लोन देने के लिए उन्होंने जहाँ से कर्ज लिया था उस कर्ज की ब्याज दर उन्हें खुद के पास से देनी होगी।

क्या समाधान हो सकता है

1 बैंकों या तो अपना धन प्रबंधन सुधार कर जुर्माना वसूलने की वृत्ति को बंद करें

2 यदि कोई व्यक्ति स्वयं के धनराशि से कर्ज को उतारता है तो इस तरह के मामलों में जुर्माना नहीं वसूला जाना चाहिए।

इन पर भी हो स्पष्टता-

बैंकों के विलय और अधिग्रहण पर पुनर्विचार करते हुए बैंकों के मजबूतीकरण के लिए इनमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ाने के विकल्पों पर विचार किया जाना समय की जरुरत है।

-नरसिम्हन कमेटी की रिपोर्ट पर प्राय: अलग-अलग विचार सामने आते है। करीब 10 साल पुरानी रिपोर्ट पर हालिया वैश्विक आर्थिक मंदी से लिए सबक के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट राय सामने आनी चाहिए।


रिवर्स मोर्टगेज को बनाए लोकप्रिय

बुजुर्गों को धन की आवश्यकता की पूर्ति के लिए बनाई गई रिवर्स मोर्टगेज स्कीम को लोकप्रिय बनाकर वरिष्ठ नागरिकों को लिए सही अर्थों में लाभकारी बनाई जाना चाहिए। होम लोन की तरह आयकर छूट की सुविधा देकर रिवर्स मोर्टगेज स्कीम को लोि य बनाया जा सकता है।


यदि कर्जदार खुद के संसाधनों से लोन का समय पूर्व भुगतान करना चाहता है तो उस पर पेनल्टी नहीं ली जाना चाहिए, लेकिन लोन टेकओवर के मामलों में इसे खत्म किया जाना कठिन है।

अनिल भान, सर्क हेड, पंजाब नेशनल बैंक, इंदौर

बैंकों को ग्राहकों के आर्थिक हितों की रक्षा करने की खातिर अपना संपत्ति-देयता प्रबंधन सुधारना जाना चाहिए। यदि बैंकें खुद जुर्माना वसूलना बंद नहीं करती है तो वित्त मंत्री को बजट में इसकी घोषणा करना चाहिए।

राजेंद्र गोयल , पूर्व डायरेक्टर स्टेट बैंक ऑफ इंदौर

Thursday, March 4, 2010

निवेशकों को लूटने की खुली छुट

सुनिए वित्त मंत्रीजी कालम
प्री बजट न्यूज सीरिज-1
आईपीओ प्राइसिंग फिक्स करने के मानक ही नहीं

सेबी ने आईपीओ आईपीओ लाने के तो नियम, लेकिन प्राइसिंग फिक्स करने के नियम नहीं
इश्यु के लीड मैनेजर ही तय कर रहे है इश्यू प्राइसिंग
रिलायंस पॉवर के करंट के भी नहीं लिए करीब 15 करोड़ रु. मार्केट केपिटलाइजेशन वाले शेयर बाजार का हाल
मनीष उपाध्याय
इंदौर। निवेशकों को 'राजा से रंक और रंक से राजा" बनाने वाले शेयर बाजार में निवेशकों को रंक बनाने से बचाने के ठोस उपाय की दरकार इस बजट में अधिक शिद्द्त से की जा रही है। घोर ताज्जुब की बात है कि अरबों रु. का कारोबार करने वाले देश के शेयर बाजार में प्रति वर्ष करोड़ रु. मूल्य के सैकड़ों आईपीओ प्रतिवर्ष आते है, लेकिन इन आईपीओ की ाइजिंग तय करने का देश के पूँजी बाजार नियामक सेबी ने अभी तक कोई मानक ही तय नहीं किया है। इस अंधेरगर्दी के कारण आम निवेशक आईपीओ में निवेश के बाद कंपनियों की ठगी के शिकार हो जाते है। गत दिनों केंय कॉर्पोरेट अफेयर्स मंत्री सलमान खुर्शीद ने इंदौर में आयोजित एक कार्यक्रम में चिंता जताई थी कि देश में व्यवसायिक गतिविधियाँ तो बढ़ रही है, लेकिन निवेशक अभी तक अच्छे से शिक्षित नहीं हुए है। निवेशकों की इसी अशिक्षा का फायदा कंपनियों उन्हें ठगने के रुप में उठा रही है, जो मनमाने ीमियम पर पर आईपीओ लाकर निवेशकों की जेब से रुपया निकालने में कामयाब हो जाती है। इसका ज्वलंत उदाहरण है रिलायंस पॉवर का मेगा आईपीओ, जो लस्टिंग के दिन ही शेयर बाजार में ढेर हो गया।
क्यों है जरुरी : रिलायंस पॉवर का ही उदाहरण लेकर देखे कंपनी 10 रु। के शेयर पर अपर ाइस बैंड 450 रु। के ीमियम पर आईपीओ लेकर आई थी। गौर करने वाली बात है कि उस वक्त कंपनी के पास 1 इंच जमीन नहीं थी, एक भी प्लांट नहीं था और एक यूनिट बिजली का उत्पादन नहीं करती थी, फिर भी भो भोलेभाले निवेशकों ने उसके इश्यू को सिर्फ रिलायंस और अंबानी का नाम देखकर रिकार्डतोड़ 72 गुना अभिदान (सब्सक्राइब) दे दिया। दूसरी ओर और सरकारी क्षेत्र की बिजली कंपनी एनटीपीसी जिसके उस वक्त करीब 5 प्लांट बिजली उत्पादन कर रहे थे, उसके शेयर का उस वक्त मूल्य करीब 70 रु। था।
क्या है वर्तमान व्यवस्था : फिलहाल इश्यू की कीमत ( प्राइसिंग ) इश्यू के लीड मैनेजर तय करते है। उनके सामने भी इश्यू का मूल्य तय करने का कोई कानूनी दिशानिर्देश नहीं है। इसी का फायदा उठाकर लीड मैनेजर मनमाने ीमियम पर इश्यू ाइस घोषित कर देते है, जो कंपनी के संबंधित क्षेत्रके पीई मल्टीप के मुताबिक नहीं होते है।
क्या व्यवस्था होना चाहिए : जिस सेक्टर का इश्यू आ रहा है वह उस सेक्टर की 10 बड़ी कंपनियों का जो भी पीई मल्टीपल चल रहा है उसे इश्यू का बेस ाइस मानना चाहिए। फिर इश्यू उस बेस ाइस से 5 से 10 तिशत ऊपर-नीचे के मूल्य पर इश्यू का प्राएस तय किया जाना चाहिए। विश्ोषज्ञों का भी मानना है कि आईपीओ की प्राइसिंग का यहीं फेयर वेल्यूएशन होगा।
सेबी बनाए नियम : इश्यू प्राइसिंग शेयर बाजार नियामक भारतीय तिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) को करना चाहिए या फिर उसे आगे आकर इस संबंध में कोई मार्गदर्शक नियम बनाना चाहिए। यदि ऐसा होगा तो निवेशकों का पूँजी बाजार में निवेश करने पर विश्वास पैदा होगा और उसके ठगे जाने की गुंजाइश भी कम रहेगी।

एफएंडओ में रिटेल इंवेस्टर के ट्रेडिंग करने पर हो सख्ती
डेरिवेटिव ट्रेडिंग या एफंडओ में रिटेल इंवेस्टर के ट्रेडिंग करने की अधिक सख्त बनाया जाना चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि वैसे भी इसमें खरीदी लॉट बहुत ज्यादा होते है, लेकिन फिर भी जोखिम लेने वालों को बचाने के लिए इसे अधिक सख्त बनाया जाना चाहिए।
क्या है खराबी : एफएंडओ में रिटे इंवेस्टर जेब में 100 रु। होने पर 500 रु. का खेल खेलता है। फिर इसका उलट होने पर वह कंगाल हो जाता है जो कभी-कभी निवेशकों की आत्महत्याओं के रुप में सामने आता है। निवेशक सबसे ज्यादा धन इसी ट्रेडिंग में खोते है। एफएंडओ को ट्रेडिंग इंस्ट्मेंट के रुप में नहीं, बल्कि हेजिंग इंस्ट्रूमेंट के रुप में उपयोग किया जाना चाहिए।

एसएमई के लिए बने अग स्टॉक एक्सचेंज
सरकार को सेबी को निर्देश देना चाहिए कि वह लघु एवं मध्यम उद्यमों (एसएमई) के लिए अलग स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना करें, ताकि छोटी-छोटी कंपनियों के शेयरों में भी ट्रेडिंग शुरू हो सके तथा अन्य एसएमई प्रोत्साहित हो सके। ऐसा नहीं होने के कारण ही क्षेत्रीय स्टॉक एक्सचेंज उद्देश्यहीन हो गए और उनमें लिस्टेड शेयर आज गुमनामी में है।

आईपीओ प्राइसिंग के बारे में अभी तक सरकार या सेबी की ओर से कोई गाइड लाइन ही नहीं है। आईपीओ लाने वाले नियमों के इस अभाव का फायदा उठाकर भोलेभाले निवेशकों को ठगने में कामयाब हो जाते है। वित्त मंत्री को इस ओर जरुर ध्यान देना चाहिए।
निशांत न्याती, रीजन डायरेक्टर, आनंद राठी सिक्युरिटस

यह चिंताजनक स्थिति है। प्राय: यह देखने में आता है कि सेबी का कंट्रो नहीं होने से इश्यू प्राइस बहुत ऊँचा होता है, जो लिस्टिंग के बाद ढेर हो जाता है। सेबी और सरकार को निवेशकों के हित में इस ओर तुरंत ध्यान देना चाहए।
संतोष मुछाल , डायरेक्टर मध्य देश स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड

Tuesday, February 9, 2010

50 लाख रु. की वसूली

समय पूर्व कर्ज भुगतान पर बैंकों द्वारा जुर्माना वसूलने का मामला

लोन के प्रीपेमेंट पर इंदौर में बैंकों व होम लोन कंपनियों द्वारा जुर्माने के रुप में वसूली का मोटा आँकड़ा

वसूली खत्म होने की व्यवस्था बने-बैंकों की भी राय

मनीष उपाध्याय

मी द्वारा लिए कर्ज के समय पूर्व भुगतान पर जुर्माना के रूप में आकेले इंदौर

में ही बैंकों द्वारा प्रति माह करीब 50 लाख रूपये की वसूली की जाती है। यह तथ्य एक आरंभिक सर्वेक्षण में उभर कर आया है। इस वसूली को बैंकें अपनी व्यवस्था के सुचारु संचान के लिए जरुरी बताने के साथ-साथ इसमें सुधार की बात भी स्वीकारती है।एक आरंभिक सर्वेक्षण में यह देखने में आया है कि विभिन्ना बैंकों और होम फाइनेंस करने वाली कंपनियों को अकेले इंदौर में ही तिमाह तकरीबन 25 करोड़ रु। के कर्जों का समय पूर्व भुगतान होता है। बैंकों व होम फाइनेंस कंपनियों द्वारा वसूली की दर 2 तिशत होने के ि हाज से वसूली की गई राशि मौटे तौर पर करीब 50 ाख रु। होती है। मालूम हो कि जुर्माना वसूली की दर कर्ज की शेष बची राशि के 2 तिशत तक होती है। इस मामले में निजी क्षेत्र की बैंकें अधिक सख्त नजर आती है। दबी जुबान में माना- गैर वाजिब हैनिर्धारित समय से पूर्व ऋणदाता बैंक को कर्ज की अदायगी पर जुर्माना वसूल ने को आम कर्जदार के साथ-साथ कर्जदाता बैंकिंग क्षेत्र के उच्च अधिकारी भी दबी जुमान में गैर-वाजिब मानते है। भारतीय तिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने भी गत दिनों इस वृत्ति को थम दृष्टया ग त मानते हुए देश के निजी व सार्वजनिक क्षेत्र के तमाम बैंकों को नोटिस जारी कर सफाई माँगी है।सा भर में 1200 मामले निजी क्षेत्र के अग्रणी बैंक आईसीआईसीआई बैंक के एक उच्च अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि उनके यहाँ कर्जों के भुगतान के मामले तिमाह 12 से 15 मामले ऐसे होते है जो कर्ज के समय पूर्व भुगतान से संबंधित होते है। सा भर में करीब 1200 ऐसे मामले होते है। अधिकारी ने बताया कि उनके यहाँ कर्ज की शेष बची राशि के समय पूर्व भुगतान पर 2 तिशत तक जुर्माना वसूला जाता है। इसी तरह केव होम लोन देने के लिए स्थापित एचडीएफसी के सूत्रों का भी कहना है कि उनके यहाँ कर्ज राशि के कर्ज पेमेंट के ति माह औसतन 10 से 15 मामले आते है। इनसे 2 से 3 करोड़ रु। तक जुर्माने के रुप में वसूले जाते है। कोई दंड राशि नहीं वसूल सार्वजनिक क्षेत्र के दिग्गज बैंक भारतीय स्टेट बैंक का कहना है कि उनके यहाँ आमतौर पर समय पूर्व कर्ज अदायगी के बहुत कम मामले आते है। क्योंकि उनके यहाँ समय पूर्व भुगतान पर कोई दंड राशि या जुर्माना नहीं वसूले जाता है। सरकारी क्षेत्र के ही एक अन्य ोि य बैंक पंजाब नेशन बैंक के सूत्रों का भी कहना है कि उनके यहाँ पिछले 5-6 सा से कर्ज के ीमेंट का कोई केस नहीं आया है। खकर बताते है जुमाने के बार मेंसभी बैंकों का कहना है कि वे कर्ज देते वक्त ही कर्जदारों को समझौता दस्तावेजों पर साफ-साफ ि खकर बता देते है कि कर्ज के ी-पेमेंट पर क्या शर्त होगी। ी-पेमेंट पर जुर्माना वसू ी की दर भी सभी बैंकों की अ ग-अ ग है। कुछ बैंकें कर्ज के शुरू के 2.5 वर्ष में ही कर्ज का पूरा भुगतान करने पर कोई शुल्क नहीं ेते है, तो वहीं कुछ बैंकों द्वारा अ ग-अ ग समय पर कर्ज का ी-पेमेंट करने पर वसूली की दर शून्य से 2 तिशत तक होती है।

वसूली है मजबूरीबैन्किंग सूत्रों की द ी है कि बैंकें यदि किसी को कर्ज देती है तो वे कर्ज राशि कहीं ओर से उधार ेकर उन्हें देती है, अर्थात उसे भी उस राशि के एवज में किसी को ब्याज देना होता है। ी-पेमेंट से बैंकों को नुकसान नहीं हो इसके ि ए जरुरी है पेनल्टी चार्ज की जाती है। सुधार की है जरुरतबहरहा विशेषज्ञों का कहना है कि बैंकों और होम ोन कंपनियों का जुर्माना वसू ना अनुचित है। इस संदर्भ में बैंकिंग व्यवस्था में सुधार किए जाने की आवश्यकता है। ताकि आम आदमी को इस तरह का जुर्माना वसू ने से राहत दी जा सके।


जनता के लिए कष्टकर ेकिन बैंकों के जरुरीकर्ज के समय पूर्व भुगतान पर बैंक जुर्माना वसू ना जनता के ि हाज से कष्टकर है, ेकिन बैंक को अपने असेट- ायबि टी बंधन को संति त रखने के ि ए इसे वसू ना जरुरी है। बहरहा इसमें कुछ सुधार किया जाना चाहिए।

सर्वज्ञ भटनागर, मुख्य बंधक, पंजाब नेशन बैंक, सर्क ऑफिस इंदौर
पूरी दुनिया में ऐसा होता हैयह बिजनेस है। बैंकों को भी कर्ज देने के लिए कहीं से राशि जुटाना होती है, इसलिए जुर्माना वसू ना सहीं है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो बैंकों का आंतरिक बंधन बिगड़ जाएगा। पूरी दुनिया में ऐसा ही होता है।अजय त्रिपाठी, क्षेत्रीय बंधक, भारतीय स्टेट बैंक
आईसीआईसीआईसी बैंक और एचडीएफसी के अधिकारियों ने अधिकृत रुप से कुछ भी बताने से इंकार कर दिया।