Saturday, November 28, 2009

स्टेट बैंक ऑफ़ इंदौर का विलय उपभोक्ता हित के खिलाफ

भटकाना पड़ सकता है आम ग्राहक से लेकर कॉर्पोरेट्स को

स्टेट बैंक ऑफ इंदौर अस्तित्व की लड़ाई भाग-3

मनीष उपाध्याय

इंदौर। स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) में विलय बैंकिंग प्रणाली के केन्द्र बिंदु 'ग्राहकों" के हित में भी नहीं है। क्या भारत में बैंकिंग सुविधा इतनी सर्व सुलभ हो गई है कि देश के सभी लोगो को इसका लाभ मिलने लगा है। यदि नहीं तो फिर विलय की पहल पर सवाल उठाता है कि यह विलय बैंक के हित को देख कर किया जा रहा है या ग्राहकों के हित को?

विलय बैंक के अंशधारकों के हितों के भी खिलाफ होने के साथ-साथ एसबीआई का विलय का कदम प्रतिस्पर्धा को खत्म करने वाला है। फल्तेफुलते बैंक को विलय के भंवर में झोंकने का सबसे बड़ा खामियाजा बैंक के बड़े कर्ज लेने वाले याने कॉर्पोरेट हॉउसेस और उद्यमियों और आम ग्राहकों को को उठाना पड़ेगा। स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का हेड ऑफिस इंदौर में स्थित है, जबकि भारतीय स्टेट बैंक ऑफ का सेंट्रल ऑफिस मुंबई में है। एक बात तो साफ है कि विलय के बाद इंदौर बैंक का प्रधान कार्यालय बंद कर दिए जाएँगें। इसका सबसे बड़ा खामियाजा कॉर्पोरेट हॉउसेस और उद्यमियों को चुकाना पड़ेगा। आज इंदौर बैंक का हर बड़ा अधिकारी स्थानीय स्तर पर उपलब्ध हो जाता है, जो विलय के बाद संभव नहीं होगा। इसके आलावा उन्हें व्यक्तिगत सेवा भी नहीं मिलेगी , जैसी की स्टेट बैंक ऑफ इंदौर स्थानीय बैंक होने के नाते दे रहा है। कुछ नया नहीं मिलेगा प्रोद्योगिकी के इस्तेमाल के मामले में स्टेट बैंक ऑफ इंदौर और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया दोनों करीब-करीब एक समान है। इंदौर बैंक वह सभी ौद्योगिकीकृत सुविधाएँ मुहैया करा रहा है जो एसबीआई भी दे रहा है। इस तरह वि य के बाद आम ग्राहकों को कोई नई एडेड सर्विस नहीं मिलेगी

विलय के बाद बढ़ेगी मुश्किलें

विलय के बाद ग्राहकों के लिए मुश्किल बढ़ जाएगी प्रदेश में कई स्थानों पर स्टेट बैंक ऑफ इंदौर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की शाखाएँ कमोबेश पास-पास ही स्थित है। विलय के बाद एसबीआई अपना परिचालन खर्च बचाने के लिए युक्तियुक्तकरण के नाम पर शाखाओं का भी एक-दूसरे में विलय करेगा। हेड ऑफिस और झोन ऑफिस बंद कर दिए जाएँगें। जिसकी कीमत आम ग्राहकों को अधिक भीड़ और कुछ दूर और चलने के रुप में चुकानी होगी।

शेयरधारकों के भी खिलाफ

फिलहाल बैंक के मध्यप्रदेश में निवासरत अंशधारकों को मौका होता है कि बैंक की इंदौर में होने वाली वार्षिक साधारण सभा में वे अपनी राय जाहिर कर सके। विलय के बाद उनसे यह सुविधा छींन जाएगी। एसबीआई के शेयरधारकों की बैंठक तो केवल मुंबई, को काता और अन्य महानगरों में ही आयोजित की जाती है। उक्त तथ्यों से क्या साबित होता है कि विलय केवल जिद के लिए किया जा रहा है या ग्राहकों को के हितों के लिए ?

खत्म होगी प्रतिस्पर्धा

स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का विलय मध्य प्रदेश से बैंकों की प्रतिस्पर्धा को भी खत्म करेगा। फिलहाल प्रदेश में मुख्य रुप से स्टेट बैंक ऑफ इंदौर, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ इंडिया बैंकिंग तिस्पर्धा में आमने-सामने है। विलय के बाद एसबीआई का एकाधिकारवाद बढ़ेगा। जिसके फलस्वरूप प्रतिस्पर्धा और उपभोक्ता सेवा दोनों में कमी आएगी।

मध्य प्रदेश के आर्थिक विकास का पर्याय इंदौर बैंक

अन्य सरकारी बैंकों की तु ना में देश के ग्रामीण आर्थिक विकास में अग्रणी

स्टेट बैंक ऑफ इंदौर अस्तित्व की लड़ाई भाग -2
मुद्दा : स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का एसबीआई में विलय
मनीष उपाध्याय

इंदौर। अपनी पितृ बैंक की जिंद के चलते उसमें विलय को बाध्य की जा रही स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का देश के ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक विकास में योगदान किसी भी अन्य निजी या सर्वाजनिक क्षेत्र के व्यावसायिक बैंकों की तु ना में सर्वेपरि है। अगर इंदौर बैंक का एसबीआई में विलय किया जाता है तो यह देश के आर्थिक विकास के साथ खिलवाड़ ही माना जाएगा।स्टेट बैंक ऑफ इंदौर की मध्य देश में जड़ें अन्य किसी भी बैंक की तुलना में कितनी गहरी है, इसका अंदाजा इस तथ्य से गाया जा सकता है कि देश में व्यावसायिक बैंकों की कु शाखाओं में 80 प्रतिशत हिस्सा स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का है। बैंक का 60 तिशत कारोबार सिर्फ मध्य देश में ही है। स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का प्राथमिकता क्षेत्र को अग्रिम ( प्रिओरिटी सेक्टर एडवांसेस) केव मध्य देश केि त है। 31 मार्च 2009 तक बैंक की ग्रा्रमीण शाखाओं का साख जमा अनुपात (क्रेडिट डिपॉजिट रेशो) 108 प्रतिशत था, जबकि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की व्यावसायिक बैंकों के संदर्भ में यह आँकड़ा करीब 75 से 80 प्रतिशत है। अर्थात ग्रामीण क्षेत्रों में जमा हुए 100 रु। के बदले में स्टेट बैंक ऑफ इंदौर ने ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए 108 रु. लगा है। उक्त तथ्य यह बताने को काफी है कि स्टेट बैंक इंदौर ने अपनी उस भूमिका का निर्वाहन पूरी जिम्मेदारी के साथ किया है, जिसके लिया उसे 1959 में सार्वजनिक क्षेत्र की बैंक के रुप में गठित किया गया था। साथ ही उपरोक्त आँकड़ें यह भी दर्शाते है कि सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य बैंकों की तु ना में स्टेट बैंक ऑफ इंदौर ही एकमात्र बैंक है जो देश के आर्थिक खासकर ग्रामीण क्षेत्र के आर्थिक विकास की चिंता रखता है। सवा यह उठता है कि क्षेत्र में बड़ा और ाकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण होने के बावजूद अभी तक विकास के पैमानों पर देश के अन्य राज्यों की तु ना में पिछड़े मध्य देश से उसके अग्रणी बैंक स्टेट ऑफ इंदौर का स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में विलय कर उसकी पहचान खत्म कर देना देश के आर्थिक खासकर ग्रामीण आर्थिक विकास की मुख जड़ को समाप्त करना नहीं होगा ?

स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में विलय का मुद्दा : संसद की अवमानना

स्टेट बैंक ऑफ इंदौरअस्तित्व की लड़ाई भाग- १
मनीष उपाध्याय

इंदौर मध्य देश के आर्थिक वैभव और तरक्की की पहचान स्टेट बैंक इंदौर के निदेशक मंड द्वारा 19 जून 2009 को बैंक को अपनी पितृ संस्था भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) में वि य के स्ताव को तुरत-फुरत मंजूरी दिए जाने ने कई यक्ष श्नों को पैदा किया है। मध्य देश के सार्वजनिक क्षेत्र के इस सिरमौर बैंक के वि य को ेकर जो शीघ्रता दिखाई जा रही है, उसमें कई कानूनी, संवैधानिक, ासंगिकता, क्षेत्रीय भावना और अतीत के कटु अनुभवों जैसे तथ्यों की अनदेखी की जा रही है। नईदुनिया इन्हीं मुद्दों के औचित्य को श्रन्द्क्ला के रुप में अपने सुधि पाठकों को स्तुत कर रहा है।
1995 में राष्ट्रीय ग्रामीण साख सर्वे ने इस तथ्य को जोरदार तरीके से रखा था कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सिस्टम का विस्तार किए जाने की सख्त आवश्यकता है, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाया जा सके। इसी तथ्य का परिपा न करते हुए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम 1955 के जरिए तत्कालीन इंपिरिय बैंक ऑफ इंडिया को बद कर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बनाया गया था। इसे ग्रामीण क्षेत्रों में तीव्र विस्तार कर कर्ज मुहैया कराने की महती जिम्मेदारी सौंपी गई थी ताकि ग्रामीण साहूकारों के चंगु से मुक्त हो सके। बहरहा क्षेत्रीय असंतु न के कारण एसबीआई इस दायित्व का सही तरीके से निर्वहन करने में असफ रहा। फ स्वरुप 1959 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (सबसिडरी बैंक्स) एक्ट 1959 को संसद में पारित कराकर तत्कि न राजपरिवार के अधिनस्थ 7 क्षेत्रीय बैंकों को एसबीआई का अनुषंगी बैंकें-स्टेट बैंक ऑफ इंदौर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला , स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर और स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र बनाया गया। गौर करने की बात यह है कि यह सहायक बैंकें एसबीआई की महज अनुषंगी कंपनियाँ नहीं है, जिन्हें कंपनिस एक्ट के तहत अनुषंगी बनाया गया हो, बल्कि इन्हें संसद के द्वारा पारित स्ताव के आधार पर अनुषंगी बनाया गया है। जब उस वक्त इन्हें अनुषंगी के रुप में अंगीकार किया गया था, तब आज संसद को परे रखकर इनका वि य क्यों किया जा रहा है? जो संस्था संसद द्वारा असतित्व में आई है, उसका भविष्य भी संसद के द्वारा निर्धारित क्यों नहीं कराया जा रहा है? स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र के माम े में भी संसद से मंजूरी नहीं दिलाकर महज मंत्रिमंडल की मंजूरी के द्वारा विलय को स्वीकार कर लिया गया। सरकार का और एसबीआई के यह कदम संसद की अवमानना नहीं है तो क्या है?

Tuesday, November 17, 2009

नए टेक्स कोड की कोई जरुरत नहीं




सीबीडीटी के पूर्व चेयरमैन आर. प्रसाद से खास बातचीत


प्रसाद द्वारा उठाए



कोड से एफडीआई रुकेगा


मनीष उपाध्याय
इंदौर देश में त्यक्ष कर व्यवस्था संचा न के शीर्ष संगठन कें ीय त्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के पूर्व चेयरमैन आर. साद का जोर देकर कहना है कि देश को स्तावित नई त्यक्ष कर संहिता (न्यू डायरेक्ट टेक्स कोड) की आवश्यकता है हीं नहींै। उन्होंने इसके समर्थन में कई तर्क पेश किए। ी साद का कहना है कि नया टेक्स कोड देश में त्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को रोकने वा ा है। गत दिनों इंदौर वास पर आए सीबीडीटी के पूर्व चेयरमैन ी साद ने नईदुनिया से खास बातचीत में आयकर कानून में आमू चू परिवर्तन करने के उद्देश्य से आयकर कानून 1961 के स्थान पर ाए गए नए टेक्स कोड पर खु कर अपने विचार व्यक्त किए। इंदौर में मुख्य आयकर आयुक्त रह चुके ी साद फि हा इसी वर्ष बनाए गए तिस्पर्धा आयोग (कॉम्पीटिशन कमीशन) के सदस्य है। कुछ भी अच्छाई नहींी साद ने नई त्यक्ष कर संहिता ाने पर तीखा विरोध व्यक्त करते हुए सि सि ेवार इसकी कमियाँ गिनाई और कहा कि इसमें कोई अच्छाई नहीं है। ी साद का कहना है कि 1922 और 1961 के एक्ट मि ते-जु ते थे, ेकिन नए कोड में सभी स्थापित (सेटल्ड) कानूनों को बद दिया गया है। मौजूदा कानूनों को ेकर अगर कोर्ट से कोई उल्टा-सीधा फैस ा आया भी तो सरकार कानून में संशोधन कर सकती थी। अतीत में ऐसा हुआ भी कि सरकार ने फाइनेंस बिल्स (बजट) में कतिपय कानूनों को संशोधित कर किया है। किंतु स्थापित कानूनों को पूरी तरह से बद देना मेरी नजर में ठीक नहीं है। मुकदमेबाजी बढ़ेगीी साद का मानना है कि नए टेक्स कोड से आयकरदाताओं को फायदा नहीं होगा और उल्टे मुकदमेबाजी ( ीटिगेशन) की मात्रा बढ़ जाएगी। फि हा मौजूदा आयकर कानूनों के कारण मुकदमेबाजी कम हो गई है। नए टेक्स कोड में आयकर दरों को बढ़ाए जाने के श्न पर ी साद ने कहा कि जहाँ तक इनकम टेक्स रेट्स (आयकर दरों) का सवा है इन्हें तो आप हर सा पेश किए जाने वा े फाइनेंस बि (बजट) में भी बढ़ा सकते है। एफडीआई को रोकेगाी साद का कहना है कि नए टेक्स कोड की सबसे बड़ी खामी यह है कि यह देश में एफडीआई को आने से भी रोकेगा। अभी भारत की करीब 79 देशों के साथ दोहरी कर णा ी से बचने की संधि (डीटीएटी) है, नए टेक्स कोड में इस बारे में कोई व्यवस्था नहीं है। नए टेक्स में 'डोमेस्टिक ट्रीटी" शब्द का इस्तेमा किया गया है, भारत को सभी 79 देशों के साथ डीटीए की समीक्षा करना पड़ेगी अगर यह कोड आ गया तो आपको सभी देशों के साथ फिर से डीटीए करना पड़ेगी। इसको करने में 5 सा का वक्त ग जाएगा। इस बीच देश में एफडीआई रुक जाएगा, निवेशक कम हो जाएगा। जनता पर बढ़ेगा भारसीबीडीटी के पूर्व चेयरमैन ने बताया कि नया टेक्स कोड आम जनता के ि ए भी परेशानियाँ पैदा करेगा। किसी मिक या भृत्य ने 40 सा की सेवा के दौरान भ े ही कोई आयकर नहीं दिया हो, ेकिन रिटायरमेंट के वक्त मि ने वा ी राशि पर आयकर काट ि या जाएगा। मौजूदा कानून में एक कर है छूट-छूट-छूट (एक्जेंप्ट, एक्जेंप्ट एक्जेंप्ट-ईईई) याने जो निवेश किया उस पर छूट, उसकी आय पर छूट और उसके भुगतान पर भी छूट। किंतु नए कोड में इसे बद कर छूट-छूट-कर (एक्जेंप्ट, एक्जेंप्ट टेक्स-ईईटी) स्तावित किया गया है। याने निवेश पर छूट, आय पर छूट ेकिन उसके भुगतान पर कर गेगा। ी साद का कहना है कि जब व्यक्ति बूढ़ा हो जाए तब उसे मि ने वा ी राशि पर 25 तिशत कर काट ि या जाएगा। भारत जैसे देश में यहाँ वृद्धाका में सामाजिक सुरक्षा नाम की कोई चीज नहीं है, वहाँ इस तरह की पह न्यायोचित नहीं है। नाराजगी के साथ ी साद का कहना है कि टेक्स एडमिनिस्ट्रेशन इज मोर इंपोर्टेंट देन ॉ (कानूनी की तु ना में कर शासन ज्यादा महत्वपूर्ण है)। टेक्सेशन में ोसिजर ज्यादा महत्वपूणर्ँ है। इस पर किसी का ध्यान नहीं है।
बजट पूर्व ज्ञापन की व्यवस्था बद ेी साद के मुताबिक बजट पूर्व विभिन्ना संगठनों से ज्ञापन ेने की व्यवस्था भी बद ी जानी चाहिए। बजट पूर्वे वास्तव में होता क्या है, सरकार के पास 75 से 100 रि ेजेंटेशन (ज्ञापन) आते है, अंतिम 10 दिनों में किसी के पास इतना टाइम नहीं होता है कि वह उन्हें पढ़कर उनकी माँगों-सिफारिशों को बजट में शामि कर सके। सब ज्ञापन कूड़े में च े जाते है। मौजूदा व्यवस्था के स्थान पर सरकार को एक आयोग बनाना देना चाहिए, जिसमें सभी वर्ग के ोगों शामि हो। संबंधित संगठन उस आयोग को सा में कभी भी ज्ञापन दे और आयोग ज्ञापनों पर सिफारिश तैयार कर बजट आने के पर्याप्त समय पह े सरकार को दे दें। अर्थात सरकार को ज्ञापन देने वा ों और सरकार के बीच एक नोड एजेंसी बना देती चाहिए। दक्षिण अफ्रीका में 10 सा पह े से इस तरह का आयोग सफ तापूर्वक काम कर रहा है।

सीमेंट में कर्टे ाइजेशन की शिकायतों पर जाँच जारी है


तिस्पर्धा आयोग के सदस्य आर. साद का कहना है कि सीमेंट में कट्रे ाइजेशन का कुछ शिकायतें आई है, कुछ कंपनियों के नाम भी सामने आए है, इन पर जाँच जारी है। इसी तरह मल्टी प् ैक्स के भी 8-9 केस आए है, इनकी भी जाँच जारी है। कार्टे साबित हो जाने पर उसमें सामि सभी सदस्यों पर कंपनी के टर्नओवर का करीब 10 तिशत तक का जुर्माना गाया सकता है, जो भारत सरकार के खजाने में जमा होगा। आयोग ने अभी तक किसी भी माम े में कोई फैस ा नहीं दिया है। अनफेयर ॉ ेक्टिसेस (अनुचित व्यापार व्यवहार) पर अभी कानून बनना है।