Friday, March 5, 2010

बंद हो जुर्माना वसूलना

  • सुनिये वित्त मंत्रीजी
  • प्रीबजट न्यूज सीरिज 2
    मामला : कर्ज के समय पूर्व भुगतान पर पेनल्टी लेना
  • कर्जदारों के आर्थिक हित में बैंकें सुधारें संपत्ति प्रबंधन
  • कतिपय बैंकें ने भी स्वीकारा व्यवस्था में सुधार जरुरी

मनीष उपाध्याय
इंदौर। यदि कोई व्यक्ति अपनी बचत से या पूर्व निवेश से प्राप्त बड़ी राशि से अपने कर्ज का समय पूर्व भुगतान कर कर्जमुक्त होना चाहे तो उस पर जुर्माना वसूलना कहाँ तक न्यायोचित है? इस पर यदि बैंकों की दलील यह हो कि संपत्ति-देयता प्रबंधन (असेट- लायबिलटी मैनेजमेंट) के यह जरुरी है तो क्यों न इस प्रबंधन को सुधारा जाए।

बैंकिंग क्षेत्र के कतिपय लोगों का भी मनाना है कि इस बारे में सुधार की गुंजाइश है। वित्त मंत्री को आगामी बजट में आम आदमी को कर्ज बोझ से बचाने के लिए उपाय घोषित करना चाहिए। गत दिनों भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने विभिन्ना किस्म के कर्जों के समय पूर्व भुगतान पर जुर्माना वसूलने (पेनल्टी ऑन प्री -पेमेंट ऑफ लोन) के औचित्य पर बैंकों से सवा किए थे। बैंकों की यह प्रवृत्ति तो कर्ज लेने के इच्छुक लोगों को हतोत्साहित करने जैसी है। प्रतिस्पर्धा के दौर में बैंकें अपना मुनाफा बढ़ाने की होड़ में ग्राहक हितों और सेवाओं की अनदेखी करती जा रही है, जो कई बार साबित भी हो चुका है।

प्रारंभ में बैंकों ने बचत खाता धारकों को उनके खातों में रोज की शेष राशि (डेली बैलेंस) पर ब्याज देने में आनाकानी की थी। बाद में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ द्वारा भारत सरकार और रिजर्व बैंक से इस पर सवाल किए जाने के बाद बैंकें 1 अप्रैल 2010 से बचत खातों में प्रतिदिन की शेष राशि पर ब्याज देने पर तैयार हुई है। बैंकें अब कर्ज राशि के समय पूर्व भुगतान पर जुर्माना वसूलने को बंद करने पर अपनी संपत्ति-देयता प्रबंधन में संतुलन बनाए रखने के लिए जुर्माना वसूलने को उचित ठहरा रही है। सवाल यह उठता है कि क्या बैंकें ग्राहकों के आर्थिक हित की बलि लेने के बजाए अपने प्रबंधन को नहीं सुधार सकती है? हालाँकि बैंकिंग सूत्रों का मानना है कि ग्राहकों के हित में समय पूर्व कर्ज की अदायगी के मामलों को करणों की गंभीरता को देखते हुए कर्जदार अनुकूल फैसला लेना चाहिए। अगर बैंकों अपने कर्जदारों को राहत नहीं देते है तो वित्त मंत्री को बजट में जुर्माना वसूलने पर रोक लगाने की घोषणा कर देश के करोड़ों कर्जदारों को राहत देना चाहिए।

क्यों है बैंकों का डर

कर्जों के मामलों में पिछले कुछ वर्षों में ' लोन टेकओवर" की प्रवृत्तित बढ़ी है। बैंकों के मध्य लोन की ब्याज दरों के बड़ें अंतर के कारण कर्जदार भी अपनी पूँजी बचाने के लिए लोन टेकओवर को तेजी से अपना रहे है। इस मामले में निजी और सरकारी बैंकों की ब्याज दरों के बीच बड़ा अंतर है। आमतौर पर देखा गया है कि निजी बैंकों के लोन की ब्याज दरें अधिक होने के कारण कर्जदार सरकारी बैंकों के जरिए अपने लोन का टेकओवर करवा लेते है। बैंकों खासकर निजी बैंकों को डर है कि लोन के समय पूर्व भुगतान हो जाने से लोन देने के लिए उन्होंने जहाँ से कर्ज लिया था उस कर्ज की ब्याज दर उन्हें खुद के पास से देनी होगी।

क्या समाधान हो सकता है

1 बैंकों या तो अपना धन प्रबंधन सुधार कर जुर्माना वसूलने की वृत्ति को बंद करें

2 यदि कोई व्यक्ति स्वयं के धनराशि से कर्ज को उतारता है तो इस तरह के मामलों में जुर्माना नहीं वसूला जाना चाहिए।

इन पर भी हो स्पष्टता-

बैंकों के विलय और अधिग्रहण पर पुनर्विचार करते हुए बैंकों के मजबूतीकरण के लिए इनमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ाने के विकल्पों पर विचार किया जाना समय की जरुरत है।

-नरसिम्हन कमेटी की रिपोर्ट पर प्राय: अलग-अलग विचार सामने आते है। करीब 10 साल पुरानी रिपोर्ट पर हालिया वैश्विक आर्थिक मंदी से लिए सबक के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट राय सामने आनी चाहिए।


रिवर्स मोर्टगेज को बनाए लोकप्रिय

बुजुर्गों को धन की आवश्यकता की पूर्ति के लिए बनाई गई रिवर्स मोर्टगेज स्कीम को लोकप्रिय बनाकर वरिष्ठ नागरिकों को लिए सही अर्थों में लाभकारी बनाई जाना चाहिए। होम लोन की तरह आयकर छूट की सुविधा देकर रिवर्स मोर्टगेज स्कीम को लोि य बनाया जा सकता है।


यदि कर्जदार खुद के संसाधनों से लोन का समय पूर्व भुगतान करना चाहता है तो उस पर पेनल्टी नहीं ली जाना चाहिए, लेकिन लोन टेकओवर के मामलों में इसे खत्म किया जाना कठिन है।

अनिल भान, सर्क हेड, पंजाब नेशनल बैंक, इंदौर

बैंकों को ग्राहकों के आर्थिक हितों की रक्षा करने की खातिर अपना संपत्ति-देयता प्रबंधन सुधारना जाना चाहिए। यदि बैंकें खुद जुर्माना वसूलना बंद नहीं करती है तो वित्त मंत्री को बजट में इसकी घोषणा करना चाहिए।

राजेंद्र गोयल , पूर्व डायरेक्टर स्टेट बैंक ऑफ इंदौर

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