Wednesday, December 9, 2009

प्लास्टिक नोट बनाने पर विदेशी कंपनियों की नजर

रिजर्व बैंक द्वारा भारत में प्लास्टिक नोट का

शुरू किए जाने के बाद विदेशी कंपनियों ने

प्लास्टिक नोट की आपूर्ति के प्रस्ताव भेजे


मनीष उपाध्याय

रिजर्व बैंक द्वारा देश में प्लास्टिक नोट का चलन शुरू किए जाने की स्वीकृति दिए जाने के बाद विश्व की कई ख्यात कंपनियों ने भारत के विशाल प्लास्टिक नोट बाजार पर नजर गाढ़ना शुरू कर दिया है। इनमें अव्वल है ऑस्ट्रेलिया की सिक्यूरेंसी कंपनी। यह ऑस्ट्रेलिया में भी प्लास्टिक या पोलिमर नोट बनाती है तथा यह ऑस्ट्रेलिया की रिजर्व बैंक और बेल्जियम प्लास्टिक-फार्मा कंपनी यूसीबी का संयुक्त उपक्रम है। सिक्युरेंसी ने सबसे पहले 1999 में रिजर्व बैंक से संपर्क साधा था और बैंक को नमूने के तौर पर 10 और 100 रु. के प्लास्टिक नोट भी दिए थे। कंपनी ने भारत सरकार से यहाँ तक प्रस्ताव किया है कि वह भारत में ही पोलिमर नोट के निर्माण के लिए सरकार के पसंद के किसी भी उपक्रम के साथ संयुक्त उपक्रम बनाने को सहमत है। इसके खातिर सिक्युरेंसी 250 से 500 लाख डोल्लर का निवेश करने को तैयार है। कुछ सा पहले भारत आए ऑस्ट्रेलिया के वित्त मंत्री ने भारत के वित्त मंत्री से उक्त सिलसिले में चर्चा भी की थी। सिक्युरेंसी भारत के लिए प्लास्टिक नोट छापना चाहती है। ऑस्ट्रेलिया में प्लास्टिक करेंसी का चलन 17 सा पूर्व 1988 में ही शुरू हो गया था। इसके बाद सिक्युरेंसी नेपाल , बंगलादेश , वियतनाम और मैक्सिको समेत कई देशों में प्लास्टिक करेंसी का निर्माण कर रही है। यह कंपनी खुद के नाम पर पेटेंड 'गार्डियन" नाम के पोलिमर आधार पर नोटों की छपाई करती है। पोलिमर करेंसी की लगत कागज की करेंसी की तुलना में डेढ़ गुना अधिक होती है, लेकिन यह अधिक टिकाऊ होती है और इसका नकली रूप याने नकली नोट तैयार नहीं किए जा सकते।

जाली नोट के संदर्भ में कंपनी का दावा है कि योरोप में प्रति 10 लाख नोटों पर 68 और अमेरिका में लाख नोटों पर 100 नकली नोट होते हैं, लेकिन ऑस्ट्रि या में यह दर केवल 9 है। पाकिस्तान जैसे भारत विरोधी देशों और अब्दुल करीम तेलगी जैसे कई राष्ट्र विरोधी तत्वों से मुकाबले के लिए प्लास्टिक या पोलिमर नोट अपनाने को सरकार मजबूर हुई है। सरकार का भी अब मानना है कि पोलिमर तकनीक अच्छी है। दु:ख की बात है कि इस मामले में अंतिम फेसला में बहुत देर कर दी, तब तक नकली नोट का जहर देश की अर्थव्यवस्था में गहरे तक घुल मिल गए है।

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