रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया जल्द शुरू कर रहा है भारत में प्लास्टिक नोट्स
जाली नोटों से मुकाबला किया जाएगा
मनीष उपाध्याय
ब्रिटिश अर्थशास्त्री ग्रेशम ने कहा था कि बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को बाजार से बाहर कर देती है। ताजा संदर्भों में यह उक्त बात बिल्कुल मौजू लगती है। भारत में नोटों का जल्दी कट-फट जाना और गंदा हो जाना एक बड़ी समस्या है। भला कौन अपनी जेब में प्लास्टिक टेप लगे या गंदे गोंद से चिपके मैले कुचले नोट रखने की जोखिम लेगा लेकिन इससे भी बड़ा जोखिम नकली नोटों का है। आज यह जाली नोट (बुरी मुद्रा ) अच्छी मुद्रा (असली नोट) पर भारी पड़ती ग रही है। जहाँ ये नोट रिजर्व बैंक के लिए बड़ी समस्या है वहीं देश की आर्थिक सेहत के लिए नकली नोटों का मुकाबला करना और भी बड़ी समस्या। सीधी लड़ाई में तीन बार धुल चाटने के बाद पाकिस्तान ने भारत पर आतंकवाद प्रोशाहित कर देश विभाजन या देश को अस्थिर करने का कुचक्र चला किंतु अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण उसे अब झुकना पड़ रहा है। ऐसे में दुनिया में एक बड़ी आर्थिक ताकत के रूप में उभर राही भारतीय अर्थव्यवस्था को चोट पहुँचाने के मकसद ने पाकिस्तान ने देश मे जाली नोट की बाढ़ आने का षड़यंत्र रचा है। पाकिस्तानी हुकुमत के नापाक इरादों को अंजाम देने वाली आईएसआई नए काम में जोरशोर से लगी है। पूरे इरादों ने पाकिस्तान ने भारत के सीमावर्ती हिस्सों तथा नेपाल और बंगलादेश को जाली भारतीय नोट को देश में फेलाने के लिये आधार बनाया।
जनवरी 2000 में काठमांडू में एक पाकिस्तान राजनायिक का 50 हजार रु। मूल्य के जाली भारतीय नोट के साथ गिरफ्तार किया जाना यह साफ संकेत देता है कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ छेड़े इस नए छाया युद्ध को किस तरह मदद दे रहा है। पाकिस्तानी प्रतिभूति प्रेस में जहाँ उसके नोट भी छपता हैं वहाँ साथ-साथ जाली भारतीय नोट भी छापे जा रहे हैं। इसके अलावा काठमांडू में स्थित पाकिस्तान दूतावास में भी जाली भारतीय नोटों की छपाई की जा रही है। आज हालत यह है कि आईएसआई जाली नोटों के मार्फत पूर्वी और उत्तर-पूर्वी राज्यों में समानांतर अर्थव्यवस्था स्थापित करने का यास कर रही है।
देश में नकली नोटों की समस्या किस खतरनाक स्तर तक पहुँच गई है इसका अंदाज इस बात से गाया जा सकता है कि अक्टूबर 2003 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय से आग्रह किया था कि 500 रु। के नोट का चलन बंद कर दिया, क्योंकि सबसे ज्यादा जाली नोट 500 रु। के ही चलते हैं। गृह मंत्रालय ने एक विस्तृत रिपोर्ट वित्त मंत्रालय को भेजी थी। बहरहाल वित्त मंत्रालय ने यह प्रस्ताव को ठुकरा दिया कि इससे जनता में अनावश्यक घबराहट पैदा होगी। चौंकाने वाला तथ्य यह भी है कि फर्जी नोट छापने वाले भी वहीं इंक और हासिल कर रहे हैं जिसक इस्तेमाल भारतीय रिजवे बैंक नोट प्रेस करती है। भारत में कितनी मात्रा में नकली नोट च न में हैं सही-सही नहीं बताया जा सकता। एक अनुमान के अनुसार यह कई सौ करोड़ रु. मूल्य से अधिक है। नकली नोट पकड़ने के अभियान से जुड़े एक सरकारी अधिकारी के मुताबिक प्रतिदिन 50 लाख से 1 करोड़ रु. मूल्य के नकली नोट जारी होते हैं। परेशान सरकार इससे निपटने के लिए सिर्फ यह करती है कि बीच-बीच में वह नोटों की डिजाइन बंद देती है। बावजूद इसके नकली नोट बनाने वाले सवा सेर साबित हो रहे हैं। कुछ साल पहले भारत की गुप्तचर एजेंसी रॉ ने कोल्कता पुलिस की खुफिया शाखा को एक रपट सौंप कर चेताया था कि बांग्लादेश से नजदीक होने के कारण कोल्कता जाली नोटों के चलन और देश में इनका संघर करने के लिए बड़ा गढ़ बनता जा रहा है।
भारतीय अर्थव्यवस्था को गति को अजगर की तरह निगल रहे जाली नोटों का मुकाबला कैसे किया जाए? सरकार द्वारा सभी सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क कर देने के बावजूद पाकिस्तान से आ रहे नकली नोटों के अलावा अब इनको देश के भी बड़े और मध्यम शहरों में जाली नोट छापना कुटीर उद्योग की तरह उभर रहा है। शायद कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब जाली जब्त किए जाते हैं। भारत में नकली नोट का चलन अनुमानित मात्रा से कही ज्यादा है। रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय इस तथ्य को ज्यादा सार्वजनिक इसलिए नहीं करना चाहता, क्योंकि इससे आम जनता में घबराहट फेलेगी नोटों के जल्दी कटने-फटने तथा जाली नोटों के सार को रोकने के लिए प्लास्टिक नोटों का चलन शुरू करना एक कारगर उपाय माना जा रहा है।
आमतौर पर डेबिट-क्रेडिट कार्ड को प्लास्टिक मनी" कहा जाता है, लेकिन यहाँ आशय प्लास्टिक या फ़िर पोलिमर नोट से है। भारत में जहाँ डेबिट-क्रेडिट कार्ड और चैक के जरिए भुगतान का चलन बहुत कम होने के कारण नोट कई हाथों से होकर गुजरते हैं। इनमें सबसे ज्यादा 10 रु। का नोट हाथ-दर हाथ गुजरता है। इस वजह से आमतौर पर 6 माह में ही कटने-फटने लगते हैं। बताया जा रहा है कि प्लास्टिक नोट की उम्र 4 वर्ष होगी। ऑस्ट्रि या में 1995 में शुरू किए गए 50 डोल्लर के नोट अभी भी अच्छी स्थिति में हैं। रिजर्व बैंक का कहना है कि पोलिमर नोटों का भारतीय प्रयोगशालाओ में परीक्षण किया गया है। यह देखने के लिए कि यह हिन्दुस्तानी परिस्थितियों के अनुकूल है या नहीं तथा लोगो द्वारा असामान्य तरीके से रखने पर क्या भाव पड़ेगा। सबसे बड़ी बात यह है कि यदि यह गंदे हो जाएँ तो इन्हें धोया जा सकता है। मजे की बात यह है कि भारत पोलिमर नोट में इस्तेमाल किए जाने वाले बीओपीपी याने बाईएक्सीए ी-ओरिएंटेड प्रोफिन फिल्म का भारत उत्पादन करता है। एक विशेषज्ञ का कहना है कि हमारे पास इस तरह के नोटों के उत्पादन के लिए प्रोद्योगिकी आधार, सामान और इन्हें में च न में शुरू करने की सुविधाएँ मौजूद हैं। प्लास्टिक के नाम से चिड़ने वाले पर्यावरणविद् भी इसे अनुकूल ही पाएँगे। केंद्रीय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड ने अनपेक्षित रूप से नोटों के रूपांतरित स्वरूप के विचार के समर्थन किया है। बोर्ड का कहना है कि इस तरह के नोटों का पुनचक्रण किया जा सकता है। इससे पर्यावरण को कोई खतरा पैदा नहीं होगा।
कागज के नोटों की अपनी अपनी समस्या होती है। नोट के लिए प्लास्टिक का प्रयोग पर्यावरण हितैषी है। इसका सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि कोई भी व्यक्ति इसे चुनौती नहीं दे सकता क्योंकि प्लास्टिक नष्ट होग ही नहीं। पोलिमर नोट के चलन से घरों में पेंट या शर्ट की जेब को तलाशे बिना धो देने से घरों में होने वाले झगड़े कम हो जाएँगे। क्योंकि धुलने पर भी इन पर कोई असर नहीं पड़ते हैं। नोटों का कपड़े के साथ धू जाना छोटी बात है, बड़ी बात यह है कि इन नोटों के मार्फत कागज के नोटों के कटने-फटने की समस्या से मुक्ति पाई जा सकेगी। इसके अलवा पोलिमर नोट की छपाई सूक्ष्म होती है, इसके अलावा यह अंधेरे में भी चमकते हैं, इसलिए नकली नोटों की पहचान आसान होगी।
भारत की मुद्रा को दुनिया की सबसे गंदी मुद्रा माना जाता है। हालके सर्वेक्षणों में एक चौंकाने वाला तथ्य उभर कर आया है कि गंदे नोट अपने साथ संक्रमण लिए रहते हैं, जिससे टीबी, न्यूमोनिया, पेप्टिक अल्सर और आंत्रशोथ जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं।
ऐसे में सवा उठता है कि जब प्लास्टिक की थालियों में रखकर ही कटे-फटे नोट चलाये जा सकते हैं, जैसा कि कुछ समय पूर्व तक होता था, तो फिर प्लास्टिक के ही नोट क्यों नहीं चलाए जा सकते।
भारत सरकार ने अगस्त 2000 में भारतीय नोटों की उम्र बढ़ाने तथा जाली नोटों का मुकाबला करने के लिए उन पर रासायनिक, प्लास्टिक अथवा मोम में से किसी भी की एक की परत चढ़ाने के प्रस्ताव पर विचार किया था, लेकिन इसे व्यवहारिक नहीं माना गया। बहरहाल आने वाले कुछ महीनों में आपकी जेब में असली और चमचमाते प्लास्टिक नोट होंगे।
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